देव, देवकुंड एवं उमंगा त्रिकोण का परिभ्रमण विशेष फलदाई हैं।
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रंजीत कुमार,अनुमंडल संवाददाता दाउदनगर,
औरंगाबाद (बिहार) 7 मार्च 2024:- पौराणिक एवं ऐतिहासिक जिला औरंगाबाद में जहां भगवान भास्कर की पूजा की परंपरा युगों युगों से है ।
वहीं औरंगाबाद जिले के देवकुड में एक ऐसा अनोखा शिव मंदिर भी है जिसकी मान्यता त्रेता युग से आज तक उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना हमारा जिला सूर्य पूजा के लिए जाना जाता है।
हिंदी साहित्य सम्मेलन औरंगाबाद के जिला उपाध्यक्ष सुरेश विद्यार्थी ने बताया कि अनादि ब्रह्म परमपिता परमेश्वर भगवान श्री राम द्वारा स्थापित शिवलिंग नीलम पत्थर से निर्मित है।
भगवान श्री राम ने इस स्थल पर देवाधिदेव महादेव की शिवलिंग दूधेश्वर नाथ महादेव के रूप में स्थापित की है।उसके बगल में एक कुंड सहस्त्रधारा कुंड के नाम से जाना जाता है उस कुंड में विष्णु धाम के समीप स्थित मोक्षदायिनी एवं पुण्यदायिनी पुनपुन बटाने के संगम तट से जलावतरण कर सहस्त्रधारा में समाहित कराई गई थी।
त्रेता युग में कीकट प्रदेश के नाम से विख्यात घने जंगलों से आच्छादित यह क्षेत्र भृगु ऋषि के पुत्र च्यवन ऋषि का यहां तपस्या स्थल के रूप में विख्यात थी। च्यवन ऋषि के जीवन से जुड़ी बहुत से आख्यानकों की यह स्थल साक्षी रही है।
इस स्थल से कुछ ही दूरी पर महर्षि भृगु की तपस्थली भी है जिसे भृगुरारी के नाम से हम जानते हैं। देव, देवकुंड एवं उमंगा तीर्थ स्थल का त्रिकोण अद्भुत तीर्थ क्षेत्र के रूप में वर्णित है, जिस तरह विंध्याचल का त्रिकोण जगतप्रसिद्ध है। इस तरह का यह त्रिकोण धार्मिक रूप से अत्यंत ही महत्वपूर्ण है।
ऐसी मान्यता है कि एक दिन में तीनों का परिभ्रमण कर यदि हम सच्चे मन से पूजा पाठ करते हैं तो हमें मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। ऐसी भी मान्यता है कि एक ही रात में इन तीनों मंदिरों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा द्वारा किया गया था।